फागुन का मौसम आते ही गाँव के लौंडे लफाड़ी सबै हर समय जोश में आई जात हैं,
इ ससुरे मौका मिलते ही कबीर सारा रराआआआआआआअ रराआआआआआआअ कही के बुढाऊ और जवान हर केहू कई मजाक उडवाई लगत है।
आज मुरारी नहयी धोयी के सफ़ेद कुरता पैजामा पहिने साईकिल ले बाजरे जात रहें, घर ले दस कदम आगे निकलते पड़ोस वाली भौजी भर लोटा हरियरका रंग फेंकी देहनी। फिर का मुरारी लाल गुस्सा में लाल पिला होई के भौजी के न्योते लगने। मोहल्ले का लरिका कुल मुरारी के देखि देखि तली मार मजा लेवी सुरु कई देहनी। मुरारी आव देखे न ताव नाली कई कीचड उठाई के भौजी के ऊपर फेंकी खातिर दौरे लेहने। आख़िरकार नाली कई कीचड़ भाभी के ऊपर जोश में फेकी दिया॥ ठेराहे निशाना थोडा गड़बड़ हुआ और नाली का कीचड़ रसोइयाँ में रखे खाने में पहुच गया॥
अब घर में मौजूद औरतें मिल के मामला तिल का ताड़ बना दी। मामला मारा पीटी तक पहुँच गया। मुरारी बाजार गए लेकिन पट्टी करने के लिए... आख़िरकार गाँव की साडी औरतों ने ऐसे लोगों के ऊपर रंग फेकने ले तौबा कर ली, अरे भैया मुरारी कहे वुर मन गायीला भैया, जब पता है होली में हाहा देवर लगें....कबीर सररर......
शुक्रवार, 18 मार्च 2011
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